दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।
यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥
अर्थ – यदि किसी को देखने से, स्पर्श करने से या सुनने से या वार्ता करने से हृदय द्रवित हो तरङ्गमय हो जाये तो इसे स्नेह(प्रेम) कहते हैं।
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
अर्थ – लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और सुनना ये सब प्रेम के 6 लक्षण हैं।
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत्सुखम्।।
अर्थ – जो प्रेम करता है, वह उससे भी डरता है। प्रेम सभी दुखों की जड़ है, इसलिए प्रेम के बंधनों को तोड़कर सुख से रहना चाहिए।
अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।
यात्यनभ्यासतो दूरात्स्नेहो बन्धुषु तानवम्।।
अर्थ – बार बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण न मिल पाने से बन्धुओं में स्नेह कम हो जाता है।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
अर्थ- प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है। अतः प्रिय वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।